मुस्लिम महिलाओं को पैतृक संपत्ति में समान अधिकार देने वाला पहला राज्य बन सकता है उत्तराखंड

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-समान नागरिक संहिता में मुस्लिम समाज की बहु विवाह प्रथा पर लग सकती है रोक, निराश्रित माता-पिता को मिल सकते हैं बच्चों की संपत्ति में अधिकार
नवीन समाचार, देहरादून, 5 मई 2023। उत्तराखंड की भाजपा सरकार मुस्लिम महिलाओं को भी हिंदू महिलाओं की तरह पैतृक संपत्ति में समान अधिकार देने सहित कई महत्वपूर्ण फैसले जल्द लागू कर सकती है। इसके अलावा मुस्लिमों में बहुविवाह प्रथा पर भी रोक लग सकती है। उल्लेखनीय है कि हिंदू महिलाओं को यह अधिकार सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा दिया गया है।

गौरतलब है कि उत्तराखंड ऐसा पहला राज्य है, जहां भाजपा ने यूसीसी यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता लागू करने का वादा चुनाव घोषणा पत्र में शामिल किया था। राज्य सरकार ने इस पर सुझाव देने के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना देसाई की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय एक पैनल बनाया हुआ है।

यह पैनल अब संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों के तहत सबको समान अधिकार देने की ड्राफ्ट योजना को तैयार करने के लिए आखिरी दौर की बैठकें कर रहा है। गौरतलब है कि इस पैनल का कार्यकाल 27 मई को खत्म हो रहा है, लेकिन फाइनल रिपोर्ट पेश करने के लिए अगले महीने तक विस्तार मिल सकता है।

जानकारी के अनुसार पैनल ने सभी मसलों पर जनता से राय जुटाने और जनता के मजबूत समर्थन के बाद अपने ड्राफ्ट को आखिरी रूप दे रहा है। मुख्यमंत्री धामी ने भी जल्द समान नागरिक संहिता को लागू करने का इशारा किया है। माना जा रहा है कि पैनल के सुझावों के केंद्र में मुस्लिम महिलाएं हो सकती हैं।

सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार पैनल उत्तराखंड सरकार को अपनी जो रिपोर्ट देने वाला है, उसमें मुस्लिम महिलाओं को पैतृक संपत्ति में समान अधिकार यानि 50 प्रतिशत हिस्सा देने का सुझाव शामिल हो सकता है। गौरतलब है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत महिलाओं को पैतृक संपत्ति में 25 प्रतिशत हिस्सेदारी ही मिलती है।

उल्लेखनीय है कि 2005 के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद हिंदू महिलाओं को पैतृक संपत्ति में पुरुषों के समान अधिकार मिल गया है। इसी सिद्धांत के आधार पर उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता पैनल भी मुस्लिम महिलाओं को पैतृत्क संपत्ति में समान अधिकार देने पर मंथन कर रहा है।
बहुविवाह प्रथा पर भी लग सकती है रोक

इस रिपोर्ट के अनुसार मुसलमानों में कुछ परिस्थितियों में बहुविवाह और बहुपतित्व प्रथा है, उसे नकारे जाने की भी संभावना है। कुछ आदिवासियों में भी ऐसी परंपरा रही हैं। लेकिन आंकड़ें बताते हैं कि आधुनिक समय में ऐसे मामले कम हो रहे हैं। इसी तरह हिंदू संयुक्त परिवार में पुरुष उत्तराधिकरी के जन्म से पैतृक संपत्ति पर अधिकार को भी अलग रखा जा सकता है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से यह पहले ही तय हो चुका है।

निराश्रित माता-पिता के अधिकारों पर भी मंथन
बताया गया है कि यूसीसी पैनल के पास निराश्रित माता-पिता के अधिकारों का मामला भी विचाराधीन है। क्योंकि, उत्तराखंड में यह एक बड़ी समस्या है। उत्तराखंड में सशस्त्र सेना में योगदान देने वाले अनेकों जवानों का घर है। कई बार होता है कि सैनिकों के साथ किसी तरह की अनहोनी होने पर सारी सरकारी और बीमा सहायता उनकी पत्नियों को मिल जाती है। कई मामलों में सैनिकों की विधवाएं दूसरा विवाह कर लेती हैं, जबकि सैनिकों के निराश्रित माता-पिता को कुछ भी नहीं मिलता है।
ऐसे में उन जवानों के माता-पिता पूरी तरह से निराश्रित हो जाते हैं। उनकी कोई वित्तीय सुरक्षा नहीं रह जाती। पैनल के पास ऐसे कई सुझाव आए हैं कि किस तरह से बच्चों की संपत्ति और आमदनी से माता-पिता का भी कुछ हिस्सा तय किया जाए, जिससे वह भी सम्मानजनक जीवन जी सकें।

(Uttarakhand may become the first state to give Muslim women equal rights in ancestral property, muslim mahilaon ko paitrk sampatti mein samaan adhikaar dene vaala pahala raajy ban sakata hai uttaraakhand)

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